जे कृष्णमूर्ति का जन्म वर्ष 1895 में भारत में हुआ था । 13 वर्ष की आयु में ही इन्हें थियोसोफिकल सोसाइटी द्वारा अंगीकार कर लिया गया था जिसने उन्हें उस विश्व गुरु का वाहन होना मान लिया था । परंतु निकट भविष्य में ही कृष्णमूर्ति तो किसी भी बात को यथावत स्वीकार न कर लेने वाले और किसी वर्ग विशेष से ही जुड़े नौ रहने वाले ऐसे सफल शिक्षक के रूप में उभरने वाले थे जिनकी वार्ताएं और लेखन किसी धर्म विशेष से संबंध न होकर, पूर्व या पश्चिम की ना होकर पूरे विश्व के लिए थी । औरों द्वारा बना दी गई अपनी मसीही छवि को दृढ़ता पूर्वक तोड़ते हुए उन्होंने अपने चारों ओर बनाए गए विशाल और धन-संपत्ति संगठन को 1929 में अप्रत्याशित ढंग से भंग कर दिया और सत्या को एक ऐसी 'बिना डगर की धरती' घोषित कर दिया जहां किसी गड़े हुए धर्म, दर्शन या पथ पर चलते हुए नहीं पहुंचा जा सका ।
अपने पूरे जीवन में कृष्णमूर्ति अपने लिए गुरु की पदवी को आग्रहपूर्वक स्वीकार करते रहें, हालांकि लोग किसी न किसी तरह से उन पर थोपने का प्रयास करते रहे थे। विश्व में विशाल श्रोता समूह उन्हें सुनने के लिए खींचे चले आते थे परंतु उन्होंने कभी कोई सिद्ध होने का दावा नहीं किया, कभी कोई शिष्य नहीं बनाया और हमेशा इस तरह वार्ताएं करते रहे जैसे एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से बातचीत कर रहा हो। उनकी शिक्षा के केंद्र में यह ठोस यथार्थ विद्यमान रहता था। कि केवल व्यक्तिगत चेतना में परिवर्तन के जरिए ही समाज में आमूल परिवर्तन लाया जा सकता है स्वयं को जानने तथा धर्म एवं राष्ट्र की प्रतिबंधनकारी एवं विभाजनकारी संस्कारबाध्यता को समझे जाने पर उन्होंने हमेशा विशेष बल दिया । कृष्णमूर्ति उनमुक्ता व खुलेपन की तथा "मस्तिक असकावा असीम व्योम विस्तार जहां अकल्पनीय ऊर्जा है" - इसकी तत्काल आवश्यकता की ओर संकेत करते रहे । लगता है जैसे स्वयं उनकी रचनात्मकता की गंगोत्री तथा विपुल विविधता वाले जनमानस पर अपना उत्प्रेरक प्रभाव डालने वाली उनकी कुंजी यही थी।
कृष्णमूर्ति अपने जीवन के आखिरी वक्त तक पूरे विश्व में वार्ताएं करते रहें। वह 90 वर्ष की आयु के थे जब सन 1986 में उनका देहांत हुआ। उनकी वार्ताओं, संवादों, जर्नल व पत्रों 60 से अधिक पुस्तकों में संग्रहित किया गया है। उनकी शिक्षाओं के एक विशाल संग्रह से एकल विषय पुस्तकों को श्रृंखला तैयार की गई जिसकी प्रत्येक पुस्तक उस एक ऐसे विषय विशेष पर प्रकाश डालती है। जो हमारे दैनिक जीवन के लिए प्रसंगपुण भी है और महत्वपूर्ण भी है ।