क्यों मनाते है धनतेरस और क्यों जलाते है यम के नाम का दीपक

दीपावली का त्यौहार 5 दिनों का होता है, जो कि धनतेरस से शुरू होकर भाईदूज तक चलता है। पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष त्रयोदशी के नाम धनतवंशी त्रयोदशी मनाई जाती है। जिसे आम बोलचाल में धनतेरस कहा जाता है। यह दिन मूल रूप से आयुर्वेद के जनक माने वाले धनवंतरी का पर्व है।


इस दिन नए बर्तन यहां सोना चांदी खरीदने की परंपरा है। बर्तन खरीदने की शुरुआत कब और कैसे हुई। इसका कोई प्रमाण तो नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि जन्म के समय धनवंतरी के हाथों में अमृत कलश था। यही कारण होगा कि लोग इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं।

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पौराणिक कथाओं में धनवंतरी के जन्म का वर्णन करते हुए बताया है कि देवताओं और असुरों की समुंद्र मंथन से धनवंतरी का जन्म हुआ था। वह अपने हाथों में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। इस कारण उनका जन्म पियूषपानी धनवंतरी विख्यात हुआ। धनवंतरी को विष्णु का अवतार भी माना जाता है। परंपरा के अनुसार धनतेरस की शाम को यम के नाम का दीपक घर की दहलीज (बाहर) पर रखा जाता है और उनकी पूजा करके प्रार्थना की जाती है कि वह घर में प्रवेश नहीं करें। किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं। देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से प्रेरित है। 



पौराणिक कथा के अनुसार -

यम के नाम से दिया निकालने के बारे में भी एक पहाड़ी कथा है पुराने समय की बात है एक राजा हुआ करते थे और उनका नाम हिम था। राजा हिना के यहां जब पुत्र हुआ तो उन्होंने अपने पुत्र का नाम सुकुमार रखा और अपने राजपुरोहित से अपने पुत्र की जन्मकुंडली बनवाई। कुंडली बनवाने के उपरांत राजपुरोहित कुछ चिंतित हूं। उनकी चिंता ग्रस्त मुद्रा को देखकर राजा ही ने उनसे पूछा - क्या बात है राजपुरोहित जी! आपको चिंता में लग रहे हैं? हमारे पुत्र की कुंडली में कोई दोष है क्या? 


राजपुरोहित राजा की बात सुनकर बोले- नहीं महाराज ऐसी बात नहीं है.... कदाचित मैंने कुंडली बनाते समय कोई असावधानी की होगी जिस कारण से मुझे जन्मकुंडली में कुछ दुर्घटना दिखाई दे रही है। मेरा सुझाव है कि आप इस बार इसे राज्य की प्रसिद्ध ज्योति से करवा ले। 


राजा थोड़े से आज संगीत हुए और फिर से पूछा-पुरोहित जी! हमें आप द्वारा बनाई हुई जन्म कुंडली में कोई भी संदेह नहीं है, आप वर्षों से हमारे विश्व पात्र रहे हैं। कृपया आप हमें बताएं कि क्या बात है? 


राजपुरोहित ने कहा महाराज! राजकुमार की जन्म कुंडली की गणना करने पर हमें या ज्ञात हुआ है कि राजकुमार अपने विवाह के उपरांत चौथे ही दिन सर्प के काटने से मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे।


राजा हिम चिल्लाते हुए - राजपुरोहित जी....! यह आप क्या कह रहे हैं..? अवश्य आप की गणना में कोई त्रुटि हुई है, एक बार पुणे से कुंडली को ध्यानपूर्वक देखें। यदि आप हमारे राजपुरोहित ना होते तो कदाचित आप इस समय मृत्यु शैया पर लेटे होते।


राजा हिना के क्रोध को देखकर राज्यसभा में सभी डर गए। पुरोहित ने हिम्मत करते हुए कहा-क्षमा करें राजन...! किंतु यदि आपको कोई शंका है तो आप मेरे द्वारा दिए गए सुझाव पर अमल कर सकते हैं।


उसके बाद राजा हिमने अपने पुत्र की जन्म कुंडली राज्य की तीन चार प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य से बनवाई। किंतु प्रमाण वही रहा। महाराज और उनकी पत्नी अत्यंत चिंतित रहने लगे। राजा ने दरबार में सभी को चेतावनी दी कि कोई भी इस बात को वर्णन हमारे पुत्र के समक्ष ना करें अन्यथा परिणाम भयंकर होंगे। राजा हिना को भय था कि यदि उसके पुत्र को इस बात का पता चल गया तो कहीं वह मृत्यु की चिंता में ही मर जाए। 


खैर...! समय बीतता गया और राजकुमार सुकुमार बड़े होने लगे। अत्यंत वह समय आ गया जब राजकुमार की आयु विवाह योग्य हो गई और आसपास में कई राज्यों से राजकुमार के लिए सुंदर राजकुमारियों के विवाह प्रस्ताव आने लगे। परंतु अपने पुत्र की मृत्यु के भय से राजा किसी भी प्रस्ताव को स्वीकृत नहीं दे पा रहे थे। 


यह देखकर महारानी ने कहा- महाराज यदि आप इसी प्रकार सभी राजाओं के विवाह प्रस्ताव को अस्वीकृत कर देंगे तो हमारा पुत्र क्या सोचेगा? जन्म कुंडली के भय से हम अपने पुत्र को उम्र भर के लिए कुंवारा तो नहीं रख सकते। और फिर मृत्यु तो सर्प के काटने से होगी, यदि हम माल में सुरक्षा व्यवस्था बनाते तो कदाचित सर्व की राजकुमार के पास पहुंचने से पूर्व ही हम उस सब को मार गिराए । राजा हिना को महारानी का सुझाव पसंद आया और उन्होंने एक सुंदर राजकुमारी से जिसका नाम नयाना था, से अपने पुत्र के विवाह के लिए स्वीकृत दे दि। राजकुमारी नैना देखने में जितनी सुंदर थी, बुद्धि भी उतनी ही प्रखर थी।


विवाह से पूर्व राजा ने अपने पुत्र की जन्म कुंडली में निहित भविष्यवाणी को कन्या पक्ष को भी बता दिया। पहले तो वधु के पिता ने इस संबंध से साफ इनकार कर दिया। किंतु जब यह बात राजकुमारी नैना को पता चली तो उन्होंने अपने पिता से निवेदन किया कि आप विवाह के लिए अपनी मंजूरी दे दें। अपनी पुत्री की बात को राजा ठुकरा ना सके और विवाह के लिए आशंकित मन से विवाह के लिए हामी दे दी। "विवाह अच्छी तरह से संपन्न हुआ"


राजकुमारी नैना एक दृढ़निश्चय वाली कन्या थी। उसने अपने पति के प्राणों की रक्षा करने का निश्चय कर लिया था। जैसे कैसे 3 दिन बीत गए। राजा और राजकुमारी नैना ने चौथे दिन का इंतजार पूरी तैयारी के साथ किया। उनकी योजना के अनुसार जिस किसी भी मार्ग विशेषता आने की आशंका थी वहां पर सोने चांदी के सिक्के और हीरे जवाहरात बिछा दिए गए। पूरे माहौल को रात भर के लिए रोशनी और जगमगाया गया था कि सांप को आते हुए आसानी से देखा जा सके। यही नहीं राजकुमारी नैना ने सुकुमार को भी सोने नहीं दिया और निवेदन किया कि आज हम कहानी सुनना चाहते हैं। राजकुमार सुकुमार लेना को कहानी सुनाने। 


मृत्यु का समय निकट आने लगा और मृत्यु के देवता यमराज पृथ्वी की ओर प्रस्थान करने लगे। क्योंकि सुकुमार की मृत्यु का कारण सर्प दंश का इसलिए यमराज ने सांप का रूप धारण किया और महल के भीतर राजकुमार सुकुमार और राजकुमारी नैना के कक्ष में प्रवेश करने का प्रयास किया। जैसे ही बरसात के वेश में कक्ष में दाखिल हुए तो हीरे जवाहरात की चमक से उनकी आंखें चौंधिया गई। जिस वजह से सांप को प्रवेश के लिए कोई अन्य मार्ग खोजना पड़ा।


जब राजा के कक्ष में दाखिल होना चाहा तो सोने और चांदी के सिक्के पर रेंगते हुए सिक्कों का शोर होने लगा। जिससे राजकुमारी नैना चौकस हो गई। अब राजकुमारी नैना ने अपने हाथ में एक तलवार भी पकड़ ली और राजकुमार को कहानी सुनाते रहने को कहा। दक्षिणी का मौका ना मिलता देख सांप बने यमराज को एक ही स्थान पर कुंडली मार कर बैठना पड़ा। क्योंकि अब यदि वह थोड़ा सा भी हिंदी तो सीख को की आवाज से नैना को ज्ञात हो जाता कि सर्प कहां है और वह उसे तलवार से मार डालती।


राजकुमार सुकुमार ने पहली एक कहानी सुनाएं,फिर दूसरी कहानी सुनाई और इस प्रकार सुनाते सुनाते कब सूर्य देव ने पृथ्वी पर दस्तक दे दी पता ही नहीं चला अर्थात अब सुबह हो चुकी थी। क्योंकि अब मृत्यु का समय जा चुका था यमदेव राजकुमार सुकुमार के प्राण नहीं कर सकते थे, अतः भी वापस यमलोक चले गए। और इस प्रकार राजकुमारी ने भविष्यवाणी को निष्फल करते हुए अपने पति के प्राणों की रक्षा की।


राजकुमार सुकुमार कभी नहीं जान पाए कि उनकी कुंडली का क्या रहस्य था। क्यों उनकी पत्नी ने विवाह के चौथे दिन कहानी सुनने को निवेदन किया और आखिर क्यों कहानी सुनाते हुए उन्होंने तलवार थाम ली थी? माना जाता है कि तभी से लोग घर की सुख समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घरों के बाहर यम के नाम का दिया निकालते हैं ताकि हम उनके परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए।


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